बेवफाई की यह इंतहा हो गयी ,
के तुझसे जुदा होकर भी जीने की आदत हो गयी ।
तुम लौट के आओगे हमसे मिलने,
रोज दिल को बहलाने की आदत हो गयी ।
तेरे वादे पे क्या भरोसा किया हमने,
के शब भर तेरा इंतजार करने की आदत हो गयी ।
खुशी मे भी हम क्या मुस्कुराते की,
तेरे गम मे रोने की आदत हो गयी ।
काफ़िले निकल गये हमे छोड के
के अकेले सफ़र करने की आदत हो गयी ।
हर मोड पर मिली गम की परछाईया
जिंदगी से समझोता करने की आदत हो गयी ।
जानते थे नही हो सकते कभी आप हमारे
फिर भी खुदा से आपको ही मांगने की आदत हो गयी
पैमान-ए-वफ़ा हमे क्या मालुम इबाद
के बेवफाओंसे दिल लगाने की आदत हो गयी ...
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